बुधवार, 15 जून 2022

सौतिन तो चून की भी बुरी Sautan to chun ki bhi buri

 

सौतिन तो चून की भी बुरी

 

सौतिन तो चून की भी बुरी Sautan to chun ki bhi buri

 

            एक जमींदार था। उसका भरापुरा पस्विर था। तीन भाई थे और एक बहन। चारों का विवाह हो चुका था। कई कमरों वाला बड़ा मकान था। उसी मकान में तीनों भाई अलग-अलग रहते थे। तीनों भाइयों का अलग-अलग भोजन बनता था। मकान के बीच में बड़ा आंगन था। वहीं अपनी-अपनी तरफ बैठकर अपना-अपना भोजन बनाती रहतीं और अापस में बातें करती रहतीं। कोई पड़ोसिन आती, तो वह भी उन्हीं के पास बैठकर सबसे बातें कर लेती थी। इस मकान का मुख्य दरवाजा एक ही था।

             तीनों ही देवरानियां और जेठानियां प्रेमपूर्वक रहती थीं । तीनों ही खाना लगभग एक ही समय बनाती थीं । जो खाना जल्दी बना लेती थी, वह किसी के पास बैठ जाती और बातें करने लगती थी। कभी ऐसा भी होता कि दो खाना बना लेतीं, तो दोनों ही तीसरे के पास बैठकर अपने दुख-सुख की बातें करतीं। कभी -कभी पड़ोसिनें आ जातीं, तो वे भी बातों में शामिल हो जाती थीं।

जब घर -बाहर की महिलाएं एक साथ बैठती थीं, तो अपने घर की गांव की बातों का सिलसिला चल पड़ता था। कभी किसी की बहु के बारे में, तो कभी किसी के पति के बारे में । कभी किसी की लड़की के बारे में, तो कभी किसी के लड़के के बारे में । कभी अपने -अपने पतियों के बारे में चर्चाएं करने लगती थीं । और कभी -कभी अपनी ननदों और सासों के बारे में भी। जब एक अपने मायके के बारे में बात करती, तो सब अपने-अपने मायके के बारे में बातें करने का मौका नहीं छोड़ती थीं।

आजकल एक चर्चा गांव में फैली थी कि जमींदार के बीच का भाई जब घर-बाहर एक साथ दुसरी पत्नी को घर लाने वाला है। पुरुषों से अधिक चर्चाएं महिलाओं में थीं। महिलाएं खेत-खलिहानों और पनघट पर, जहां भी चार औरतें इकट्ठी होतीं, यह चर्चा शुरू हो जाती थी।

बाहर की चर्चाएं अब जर्मींदार के घर में होने लगतीं। कभी देवरानी जेठानी आपस में बातें करतीं, कभी गांव और पड़ोस की आने वाली महिलाओं के साथ चर्चाएं होतीं । जिसकी सौत आने की बात कही जाती, वह बहुत दुखी होती। कभी वह बहुत गुस्सा होती, कभी फूट-फूटकर रोने लगती। और कभी कोई मजाकिया रूप में कहती, तो वह हंसने भी लगती।

एक बार उसके यहां पड़ोसिन आई। वह बहुत हंसमुख और मजाकिया थी। जिस समय वह जमींदार के यहां आई, वह रोटियां बना रही थी। आंगन में आते ही उसकी जेठानी ने कहा, "राम-राम जिजी। आओ, इस पीढ़ा पर बैठ जाओ ।"राम-राम" उसने कहा और पीढ़ा के पास जाकर बैठ गई । बातें शुरू हो गई । बातों -बातों में बात उसकी देवरानी की आने वाली सौतिन के बारे में चल पड़ी। पड़ोसिन उसी की तरफ देखकर बोली, "ऐरी, तेरी सौतिन कब आ रही है । तेरा आधा काम तो वो ही कर दिया करेगी। वह तुनककर बोली, "तुम भी जिजी ऐसी बात कर रही हो। सौत आई तो मैं जहर खा लूंगी या कहीं चली जाऊंगी। इस घर में नहीं आने दंगी सौत को। " जेठानी खाना बना चुकी थी। पड़ोसिन और जेठानी उसी के पास आकर बैठ गई। ढाँढस बंधाते हुए उसकी जेठानी ने कहा, "देवर जी मान जाएंगे। तू समझा न उसे। मैं भी समझाऊंगी।

 

            इसी तरह से बातें चल रही थीं। इसी बीच पड़ोसिन को शरारत सूझी। उसने परात में से थोड़ा गीला आटा लेकर एक आकृति बनाकर परात के इस तरफ यानी उसके सामने रख दी। उसे देखकर वह बोली, "जिजी यह क्या बना दिया?"  पड़ोसिन मजाक करते हुए बोली, "अरे, यह तेरी सौतिन है ।

            उसने गुस्से में तेजी से हाथ बढ़ाया और उस आटे की आकृति को उठा लिया और दोनों हाथों की हथेलियों के बीच मसलकर दूर फेंक दी। उसकी देवरानी और जेठानी पड़ोसिन की ओर देखने लगीं। पड़ोसिन ने थोड़ा मुस्कराते हुए कहा, "सौतिन तो चून की भी बुरी"। अरी बहन, असली होती तो क्या होता?'

सब ठहाका मारकर हंसने लगीं। उसके चेहरे पर गुस्सा छाया हुआ था । उस गुस्सा भरे चेहरे पर भी हल्की मुस्कान फैल गई और उसने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया।

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