जल में रहकर मगर से बैर
एक नदी थी। उसमें तमाम मछलियां रहती थीं। अास-पास गांव के लड़के ही के किनारे-किनारे चलते थे और किनारे से तैरती मछलियों के बच्चों को देखते थे। उन्हें पकड़ने की कोशिश भी करते थे। लेकिन मछलियों के बच्चे लडकों के हाथ नहीं आते थे। कभी-कभी किनारे पर कछूए भी देखने को मिल जाते थे।
उसी नदी में एक मगर भी था। वह मरघट के पास रहता था। मरघट और धोबी घाट पास-पास नदी के किनारे पर थे। वह मरघट पर ही रहकर मर्दों को खाकर अपना पेट भरता था। धोबी घाट की ओर चक्कर लगाता रहता था। वैसे वह शोर-शराबे से दूर रहता था। धोबी घाट के इधर लोगों के स्नान करने वाला घाट था । इधर जब भी वह चक्कर लगाता था, दोपहर के सन्नाटे में लगाता।
धोबी घाट पर धोबी कपड़े धोया करते थे। वहीं पेड़ों की छाया में दोपहर को थोड़ा आराम करते और भोजन करते । बुजुर्ग और बच्चे पेड़ों की छाया में बैठे रहते थे। पुरुष और महिलाएं पानी में किनारे से कपड़े धोते रहते थे। धोबी घाट के लोगों को मगर अक्सर दिखाई देता। उसके साथ एक कछुआ भी दिखाई देता था। कछुआ अधिकतर मगर की पीठ पर बैठा होता। लोगों का कहना था कि इस मगर और कछुए में दोस्ती है । इसीलिए ये अक्सर साथ-साथ दिखाई देते हैं।
कुछ दिन बाद धोबियों ने कछुए को मगर के साथ नहीं देखा। उन्होंने सोचा कि मर गया होगा। या दोस्ती टूट गई होगी। लेकिन कुछ दिन बाद ही मगर उस कछुऐ का पीछा करते दिखाई दिया। वे समझ गए कि मित्रता अब दुश्मनी में बदल गई है । एक दिन उन्होंने देखा कि कछुआ छपाक से नदी के किनारे आ गिरा । वह संभल भी न पाया था कि मगर ने उसे अपने दोनों जबडों में ले लिया। और देखते देखते मगर उसे लील गया।
यह देखकर उनको बहुत दुख हुआ । उनमें से एक लंबी सांस खींचते हुए बोला, "जल में रहकर मगर से बैर, यह संभव नहीं।"
कुछ क्षण तक सन्नाटा छाया रहा।
