गुरुवार, 16 जून 2022

अक्ल बड़ी या भैंस Akla badi ya bhens

 

अक्ल बड़ी या भैंस

 

 

अक्ल बड़ी या भैंस Akla badi ya bhens

            एक बार एक राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने गया। राजा को उस दिन शिकार नहीं मिला। जंगल घना और बहुत बड़ा था। राजा शिकार की खोज में और आगे बढ़ता गया। फिर भी कोई शिकार नहीं मिला। इस प्रकार राजा थोड़ा-थोडा वढ़ते हुए बहुत अंदर चला गया। अंत में राजा को निराश ही होना पड़ा। अब राजा ने वापस आना ही उचित समझा।

लौटते समय राजा जंगल में भटक गया। जिस रास्ते से आए थे, वह रास्ता नहीं मिला। इधर राजा के पास पानी भी समाप्त हो गया था। राजा को तेज प्यास लग रही थी । वे रास्ता ढूंढ रहे थे और पानी की जुगाड भी सोचते रहे।

बहुत देर तक इधर-उधर भटकने के बाद उन्हें बकरीं चरतीं दिखाई दीं। राजा समझ गया कि बकरियों को चराने वाला भी यहीं कहीं होगा। राजा ने सोचा, पहले उसे ढूंढ़कर पानी की व्यवस्था करते हैं। फिर रास्ते के बारे में सोचेंगे। राजा ने सैनिकों से कहा कि पठार के इधर-उधर ही बकरी चराने वाला होगा। इस पठार को छोड़कर और कहीं मत जाना। नहीं तो कोई इस जंगल में खो सकता हैं।

सब लोग ढूंढने के लिए पहाड़ी के चारों ओर निकल पड़े । राजा और शेष सैनिक वहीं बैठे रहे। थोड़ी देर में बकरियों का एक झुंड आता दिखाई दिया। बकरियों को हांकते दो गडरिये चले आ रहे थे। उनके पीछे राजा के सैनिक चले आ रहे थे। राजा के पास आते ही सब रुक गए। ढूंढने निकले और सिपाही भी थोड़ी देर में वापस आ गए।

राजा ने गड़रियों से कहा कि हम लोग प्यासे हैं । मुझे वहां ले चलो जहां पानी मिल सके। आगे आगे बकरियां, उनके पीछे हांकते गडरिए और गडरियों के पीछे राजा और उसके सैनिक चल दिए। कुछ समय चलने के बाद दो चार झोंपड़ीनुमा मकान दिखाई दिए। यह गड़रियों का वह स्थान था जहां घर से आकर वे विश्राम करते थे और बकरियों को चराते थे। ये अपना खाना और पानी भी यहां रखते थे। बकरियां वहीं छोड़कर उसने राजा से बैठने को कहा। वहां एक विशाल पेड़ के चारों ओर मिट्टी का गोल चबूतरा बना था। उसी पर राजा बैठ गया।  गडरिया अंदर गया। औदर से पानी भरा एक लोटा लेकर आाया। उसने लोटा राजा को दे दिया। राजा ने इत्मीनान से पानी पिया। बाद में गडरियों ने सैनिकों को भी पानी पिलाया।

            पानी पीकर राजा कुछ क्षण वहीं बैठा, तो उसका मन प्रसन्न हो गया। राजा ने गड़रियों से कहा, "मैं आप दोनों से बहुत प्रसन्न हूं । यहां मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नहीं है। आप मेरे दरबार में अवश्य आना। मैं आप लोगों को आमंत्रित करता हूं।

जब राजा चलने को हुआ तो गड़रियों से कहा, " हम लोग जंगल का रास्ता भी भूल गए हैं। रास्ता और वता दो। आपको थोड़ी परेशानी तो और होगी।

"जहांपनाह चलिए। आपको रास्ते पर छोड़ देते हैं, जहां से आप सीधे नगर को चले जाओगे। '

गड़रिए आगे-आगे चलते गए । राजा तथा सैनिक उनके पीछे-पीछे चलने लगे। कई पठारों के ऊपर -नीचे, दाएं बाएं होते हुए एक रास्ते पर जा पहुंचे।  वहां पहुंचते ही राजा को रास्ता याद हो आया। राजा ने उन्हें धन्यवाद दिया और दरवार में आने के लिए एक बार फिर कहा।

            कुछ दिन बाद वे दोनों गड़रिए राजा के दरवार में जा पहुंचे। राजा ने पहचानकर उनका स्वागत किया। दोनों ही सुडौल, सुंदर और स्वस्थ युवक थे। थोड़ी देर बाद राजा ने अपने दरवारियों को बताया कि कैसे इन दोनों ने जंगल में हमारी सहायता की थी। अंत में दोनों से राजा ने कहा, "अब आप दोनों को क्या पुरस्कार दिया जाए? मैं चाहता हूं कि आप दोनों आपनी अपनी इच्छा के अनुसार मांग लो।

पहले गडरिया ने सोचा कि बकरी दूध बहुत कम देती है और भैंस कई बकरियों के बराबर दूध  देती है। इसलिए भैंस ही मांग लेता हूं । इस प्रकार पहले गड़रिए ने कहा, ''महाराज, मुझे एक भैंस दे दी जाए। राजा उसकी बात सुनकर मुस्कराए । फिर राजा ने दूसरे गड़रिए से कहा कि तुम क्या चाहते हो, मांग लो।

दूसरा गड़रिया सोचने लगा कि लोग कहते हैं कि गांव के मुखिया, पंच सब अक्ल के कारण बनते हैं। अक्ल से सब तरह क काम किए जा सकते है। अच्छा-से-अच्छा काम किया जा सकता है। यह सोचकर उस गड़रिया ने कहा, "महाराज, मुझे अक्ल दे दीजिए। राजा उसकी बात सुनकर आश्चर्यचकित हुआ। और प्रसन्न भी। राजा सोचने लगा कि एक जंगल में रहने वाला गड़रिया अक्ल को श्रेष्ठ मानता है। यह एक बड़ी बात है। निश्चय ही इसकी प्रखर बुद्धि हो सकती है।

राजा ने एक अच्छी भैंस मंगवाई और पहले गड़रिए को दे दी। वह भैंस लेकर चला गया। दूसरे से कहा कि यहीं रुको। राजा ने अपने यहां उस गड़रिए युवक के रहने, पढ़ने आदि की व्यवस्था करा दी।

वह दिन-रात मन लगाकर पढ़ने लगा। उसे विभिन्न प्रकार की शिक्षाएं दी गई। उच्व शिक्षाएं भी दी गई । उससे विचार-विमर्श भी किया जाता। राजा को लगा कि यह युवक गड़रिया वास्तव में कुशाग्र बुद्धि का एक होनहार युवक हो गया है। राजा ने उसे अपने दरबार में ही उच्च पद पर रख लिया।

कुछ दिन बाद वह गड़रिया युवक एक उच्च अधिकारी बन गया था। एक बार वह अपने गांव गया। गांव के लोग उसके घर के बाहर खड़े हो गए।उसकी वेशभूषा और उसके चेहरा का तेज देखकर कम ही लोग पहचान पाए थे। पहला गड़रिया जो भैंस लेकर आया था, वह तो उसके खानदान का ही था। वह भी आया। दोनों बाहें मिलाकर गुथ गए । दोनों के आंसू बहने लगे। दोनों एक साथ बैठे और बातें करने लगे। गांव तथा घर के सब लोग खुश नजर आ रहे थे।

नब्बे वर्ष का उन दोनों का दादा उनके सामने खड़ा था। खुशी के मारे उसकी भौँहें हंसने लगी थीं। दोनों की ओर मुखातिब होकर उसने कहा,बोलो भाई, 'अक्ल बड़ी या भैंस'।" सब लोग ठहाका मारकर हंस दिए।

Share this:

Related Posts
Disqus Comments