सोमवार, 13 जून 2022

जैसे को तैसा मिले, सुनिए राजा भील jaise ko taisa lokokti

 

जैसे को तैसा मिले, सुनिए राजा भील

 

जैसे को तैसा मिले, सुनिए राजा भील jaise ko taisa lokokti

 

            भीलों का एक राज्य था। उस राज्य के एक गांव में दो पड़ोसी थे। दोनों में पक्का दोस्ताना था। दोनों परिवारों में घर जैसे संबंध थे और उनका आपस में खूब आना- जाना था। वे हमेशा एक-दूसरे के काम आते थे। किसी एक को किसी चीज की जरूरत पड़ी, तो वह दूसरे के यहां से ले आता था। एक घर में खाना या अन्य कुछ खाया जा रहा होता और उस समय दूसरे परिवार का कोई सदस्य पहंच जाता, तो बिना कुछ खाए वह वापस नहीं आता था। तीज-त्यौहार, हारी-दुखारी हर अवसर पर दोनों परिवार एक साथ रहते थे।

उनमें से एक वणिक था जो घर पर ही परचून को दुकान चलाता था। आटा, दाल, तेल आदि रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं को बेचता था। दूसरा पंडिताई तथा संस्कार संबंधी काम करता था। वणिक का छोटा परिवार था। उसके एक लड़की और एक लड़का था। लड़की ससुराल में रहती थी। लड़का तमाम मिन्नतें मनाने के बाद हुआ था। लड़के के जन्म की खुशी में वह हर साल कुछ-न-कुछ करता था। एक बार उसने गंगा स्नान करने का कार्यक्रम बनाया।

उसने कुछ दिन में ही जाने की तैयारी कर ली। उसने बैलगाड़ी में जरूरी सामान रखा और वह अपनी पत्नी और लड़के के साथ चल दिया। जाते समय अपने घर की चाबी अपने मित्र को दे गया और कह गया कि घर की देखभाल करते रहना।

पंडित को पंडिताई का काम बहुत कम मिलता था। फालतु समय में वह चबूतरे पर बैठा-बैठा न जाने क्या- क्या सोचता रहता था। एक दिन उसके मन में विचार आया कि वणिक के यहां बहुत पैसे-जेवरात होंगे। चाबी तो पास है ही, क्यों न निकाल लिया जाए। न मोहल्ले वालों को शक होगा ने वणिक को ही। कह देंगे कि चोर ले गए होंगे। कई बार उसके मन में विचार आते कि यह गलत है। मित्र के साथ विश्वासघात है। अंत में उसने चौरी करने का विचार बना लिया।

            वणिक का मकान उसके मकान के पास ही था। झाडने-बुहारने के बहाने एक दिन उसने घर खोला। उसकी औरत बाहर के कमरे और आँगन को झाड़ती रही, वह अंदर धन और रात को ढूंढ़ता रहा। उसे कुछ नहीं मिला। हारकर वह अपनी पत्नी के पास आ गया। थोड़ी देर दोनों झाड़ते-पोंछते रहे। फिर मकान बंद करके अपने घर आ गए।

कुछ न मिलने पर उसे बड़ा मलाल हुआ। उसने बड़े बड़े भारी- भारी पीतल के बर्तन देखे थे। उसने उन्हें ही चुराने का मन बना लिया। एक दिन अंधेरी रात में उसने पीतल के बर्तन निकालकर और कहीं दूसरी जगह छिपा दिए।

जब वणिक अपनी तीर्थयात्र से वापस आया, तो वह अपने मित्र से बड़ी प्रसन्नता के साथ मिला। वहां से लाया हुआ प्रसाद भी उसे दिया। थके होने के कारण दो दिन तक खूब आराम किया। इसके बाद उसने अनुष्ठान का कार्यक्रम बनाया। अनुष्ठान में बड़े बड़े बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए उसने बर्तनों वाले कमरे का ताला खोला। वह कमरा देखकर हैरान हो गया। बड़े-बड़े सब बर्तन गायब थे। उसने अपने मित्र से पूछा, तो वह बोला, "अरे मित्र, आप भी कुछ नहीं जानते। उन बर्तनों को घुन खा गए होंगे। वह ताज्जुब - भरी मुद्रा में बोला, "घुन खा गए होंगे?" वह पंडित

बोला," हां भाई, अभी आपको कुछ भी नहीं मालूम ।"

वणिक पंडित के उत्तर सुनकर चुप रह गया। वह समझ गया कि पंडित ने मेरे साथ विश्वासघात किया है। पंडित समझ न पाए, इसलिए वणिक ने कहा, "अरे मित्र, खा लेने दीजिए घुनों को । कोई चिंता करने की बात नहीं। और मित्र से पहले जैसा व्यवहार बनाए रखा। अनुष्ठान के लिए उसने दूसरे जगह से बर्तनों की व्यवस्था की।

एक सप्ताह बाद उसने अनुष्ठान किया और उसमें गांव के जर्मींदार, पंच आदि समाज के बड़े-बड़े लोग आए। इस अवसर पर पंडित का भी पूरा परिवार आया था। उसने भी दौड़ धूप करके अनुष्ठान की व्यवस्था कराई थी। पंडित का चार वर्ष का लडका था। वह वहीं अपने बराबर वाले बालकों के साथ खेल रहा था।

पंडित और पंडिताइन दोनों अनुष्ठान में काम करते थक गए थे। दिन डूबने के कुछ समय बाद खाने का काम समाप्त हो गया था। पंडित-पंडिताइन दोनों अपने घर जाकर आराम करने लगे। अपने लड़के को वणिक के यहां हो खेलते छोड़ दिया था। उन्होंने सोचा था कि खिलकर घर आ जाएगा।

इधर वणिक ने मौका पाकर पंडित के लड़के को गोद में लिया ओर एक व्यक्ति को देते हुए कहा, ''यह बच्चा मेरे बच्चे के समान है। इसको ठीक से रखना। अपने बच्चों के साथ इसे छोड़ देना।' वह बच्चे को लेकर चला, तो बच्चे को रास्ते में नींद आ गई। घर पहुंचते ही उसने चारपाई पर लिटा दिया।

            पंडित जब सोने की तैयारी करने लगा, तो उसे ध्यान आया कि वणिक के यहां से बच्चा तो आया नहीं। रात भी खूब हो गई थी। वह बच्चे को लेने के लिए वणिक के घर पहुंचा। उसने देखा कि वहां वणिक के बच्चे खेल रहे हैं और सब बच्चे घर जा चुके थे लेकिन उसका बेटा वहां नहीं उसने पूछा, " मेरा बेटा दिखाई नहीं दे रहा है।' वणिक ने कहा, "तुम्हारा लड़का घर नहीं पहंचा? कुछ देर पहले यहीं बच्चों के साथ खेल रहा था। सब बच्चे अपने-अपने घर चले गए। उनके साथ ही तुम्हारा लड़का भी चला गया था।'

पंडित रात-भर गांव की गलियों में चक्कर लगाता फिरा, ढूंढ़ता फिरा। सूबह होते ही फिर वणिक के घर पहुंचा। और बोला, "रात पूरा गांव छान मारा, कहीं पता नहीं चला बेटे का। अब फिर ढूंढ़ने जा रहा हूं । और लोग भी ढूंढ़ रहे हैं। दुख जताते हुए वणिक बोला, "ऐसा तो कभी हुआ नहीं। मैं भी ढुंढवाता हूं।" दोनों ही घर से बाहर निकले। पंडित एक तरफ चल दिया और वणिक दूसरी दिशा में।

वणिक अपने गांव और आस-पास के खेतों में घूमकर घर आ गया। पंडित जगह-जगह घूमता रहा और दोपहर के करीब थका- हारा फिर वणिक के पास पहंचा। वणिक के घर के आगे के भाग में दुकान थी। वह अपनी दुकान खोले बैठा था। दुकान पर रुककर पंडित ने कहा,भाई, कहीं पता नहीं चला बेटे का। " इतना सुनते ही वणिक बोला, "अरे भाई, सुबह तुम तो इधर चले गए थे। मैं उधर गया था। ढुंढकर जब मैं घर की ओर आ रहा था कि गांव के बाहर तुम्हारा लड़का आता दिखाई दिया। मैं उसकी ओर बढ़ा कि इतने में ही मेरी पीठ पीछे की ओर से एक चील आई और तुम्हारे लड़के को पंजों में लेकर आकाश की ओर उडी चली गई। थोड़ी देर बाद चील आंखों से ओझल हो गई।"

पंडित समझ गया कि वणिक ने ही मेरे लड़के को गायब किया है। वह चुपचाप रहकर सोचता रहा कि इससे कुछ कहने से कोई फायदा नहीं। राजा के यहां इसकी शिकायत करते हैं। यह सोचकर वह चल दिया।

घर आकर पंडित ने पंडिताइन को लिया और राजा के दरबार में पहुंच गए। दोनों ने वणिक के खिलाफ राजा से शिकायत की। उसने कहा "महाराज, हमारे मित्र वणिक ने मेरा पुत्र गायब कर दिया है । पूछने पर बताता है कि तुम्हारे बच्चे को चील पंजों में लेकर उड़ गई।"

राजा ने उसकी बात सुनी तो कुछ समझ में नहीं आया। यह माजरा क्या है, यह समझने के लिए राजा ने तुरंत हरकारा भेजकर उस वणिक को बुलवा लिया। भीलों के राजा ने वणिक से पूछा, "इसका लड़का तुम्हारे यहां था। कहां गया? तुम कहते हो कि लड़के को चील तुम्हारे सामने पंजों में लेकर उड़ गई। लड़के को चील कैसे लेकर उड़ सकती है। वणिक ने हाथ जोड़कर बड़े इत्मीनान से कहा- 'जैसे को तैसा मिले, सुनिए राजा भील पीतल को घुन खा गए, लड़के ले गई चील'

वणिक की बात सुनकर राजा असमंजस में पड़ गया और बोला, "वणिक, ये सब क्या कह रहे हो? साफ साफ कहो। लडके के बीच में घुन और पीतल कहां आ गए।

वणिक ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "महाराज, जब पीतल के बरतनों को घुन खा सकते हैं, तो चील लड़के को लेकर क्यों नहीं उड सकती।'" इसके बाद उसने पूरी बात विस्तार से समझाई। पूरी बात समझकर राजा ने पंडित से कहा, "देखो, इसके पीतल के बर्तन वापस कर दो और इससे अपना लडका ले लो।

 

 

 

 

 

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