घर नहीं घनेरे, बाहर बहुतेरे
एक गांव में एक राजपूत परिवार था। परिवार संपन्न लोगों में से था। उस परिवार में एक लड़का बहुत उत्पाती और आवारा था। वह घर का कोई काम नहीं करता था। गांव में खेलता रहता। उसने पढ़ना छोड़ दिया था। कभी किसी लड़के की पिटाई कर देता। कभी किसी वृद्ध से छेड़खानी करता, गाली देता। उससे आस-पड़ोस बुरी तरह से परेशान था। कई लड़कों का उसने पढ़ना छुड़वा दिया था। कभी किसी के दरवाजे पर लड़के ले जाकर ऊधम मचाता। लोगों के मना करने पर भी लड़ता और गाली-गलौज करता। जो भी उसके घर शिकायत करने जाता, उसके घरवाले उससे उलटे लड़ने लगते। उसकी मां कहती, "किसका लड़का ऊधम नहीं मचाता। क्या लड़का खेलेगा नहीं?" और घरवालों के सामने वह लडका भी गलत ढंग से बोलता। जब वे कहते कि देखा तुम्हारा लड़का तुम्हारे सामने कैसे बोल रहा है? तो उस लड़के की मां कहती, "क्या कह रहा है। "लड़के की मां उसे डांटने की बजाए उसका हौसला और बढ़ाती। कभी-कभी शिकायत करने वालों से लड़ने लगते। कभी-कभी बच्चों में मार-पिटाई हो जाती। चोटें लग जातीं लेकिन हर हाल में वे अपने लड़के की तरफदारी करना नहीं छोड़ते। हमेशा लड़के की गलत बातों को सही करते रहते।
इस प्रकार गांव के लोग इस लड़के से झगड़ा करने से बचते थे । अगर वह लड़का थोड़ा बहुत कह सुन जाता या किसी बच्चे को मार-पीट देता, तो सहकर रह जाते। गरीब आदमी पर न ताकत होती है और न पैसे। वह गम खाकर रह जाता। क्योंकि गरीब आदमी को अपनी रोटी कमाने से ही फुर्सत नहीं होती । खाने के लिए ही पैसा नहीं कमा पाता । इन झंझटों के लिए पैसे कहां से लाएंगे।
एक दिन एक खबर गांव में आग की तरह फैल गई। गांव के बाहर बाग में लड़कों में खूब झगड़ा हो गया । कुछ लड़के इस गांव के थे कुछ लड़के पास के गांव के। पता चला कि इस गाव के राजपूत का झगडालू लड़का दो चार लडकों के साथ बाग में गया था। वह बाग पास वाले गांव के ठाकुरों का था। उस बाग में जाकर इन लड़कों ने फल तोड़े और रखवाली कर रहे बुड्ढे को गालियां दीं और दो-चार धक्के भी लगा दिए।
कुछ देर में बाग वाले का लडका कुछ लडकों के साथ उस बाग में आया। उसने रखवाली करने वाले बुड्ढे के आंसू पोंछते देखा। वह बोला, "काका, क्या बात हो गई? रो क्यों रहे हो?" वह काका बोला, "नहीं बेटे, कोई परेशानी नहीं है । सामने लड़के जो फल तोड़ रहे हैं । दूसरे गांव के हैं। मना करने पर मुझे गालियां दीं और धक्के लगाए।" अच्छा। "इतना कहा और उसने काका की लाठी ली और साथ आए लड़कों को लेकर दौड़ पड़ा। उसने जाकर लड़कों की खूब पिटाई की । दो-एक लड़के तो भाग गए। राजपूत के झगड़ालू लड़कों को इतना मारा की लहूलुहान होकर गिर पड़ा। यह खबर उसके गांव में भी फैल गई । गांव के लोग आपस में बतियाते रहे। उसी भीड़ में से एक समझदार व्यक्ति ने कहा- भइया, 'घर नहीं घनेरे, बाहर बहुतेरे' ।
अधिकतर लोग सिर हिलाकर कहते हैं, हां भैया, यह बात तो ठीक कही आपने।
