बिटौरे से तो उपले ही निकलेंगे
एक अहीरों का गांव था। उसमें एक युवक था। उसकी चोरी करने की आदत छूटपन से ही पड़ गई थी। वैसे तो इस प्रवृत्ति के दो-चार व्यक्ति और भी थे इस गांव में । उससे पूरा परिवार दुखी रहता था। चोरी-चकारी में जब उसका नाम आता था, तो परिवार के लोगों की निगाहें नीची हो जाती थीं। बड़ी बेडज्जती महसूस करता था वह परिवार।
एक दिन वह कहीं से चोरी करके लाया । लूटा माल घर न लाकर कहीं बाहर छिपा आया। वह घरवालों से डरता था। कहीं पोल न खुल जाए, इसलिए वह घर नहीं लाया। इस माल के लूटने में उस गांव के दो और व्यक्ति शामिल थे। रात को ही उन्होंने अपना-अपना बंटवारा कर लिया था। लेकिन उनमें से एक चोर चंट था और वह उसका पीछा करता रहा और माल छुपाने की जगह को देखकर वापस चला गया।
सुबह उस गांव में हल्ला मच गया कि पड़ोस के गांव में चोरी हुई है। एक दिन सैनिक उस गांव में भी घूमकर चले गए थे ।
कई दिन बाद उसने बिटौरा के उपले हटाना शुरू किए। उसका पिता भी उस समय आ गया था। उसका पिता उसे उपले हटाते हुए देखता रहा। संयोग से उसका वह चोर साथी भी आ गया जिसने उस बिटौरे में माल छुपाते देखा
जब बिटौरे के थोड़े उपले उठाने को रह गए, तो उसके पिता को कुछ शक हुआ। और वे यह भी समझ गए कि माल रखते हुए किसी ने देख लिया होगा। बाद में उसने माल निकाल लिया होगा।
अंत में उसके बाप ने कहा, "बेटा क्या ढूंढ रहे हो? "बिटौरे से तो उपले ही निकलेंगे'।"
इतना सुनते ही वह अपने बाप को आंखें फाड़कर देखता रहा।
