घी बनावे खिचड़ी, नाम बहु को होय
रामधन का छोटा परिवार था। उसके एक लड़का, लड़के की बहू और एक लड़की थी। लेकिन उसके रिश्तेदारों का दायरा बहुत बड़ा था। कोई- न-कोई उसके यहां आता रहता था। वह अपनी मर्यादा के अनुसार सबका सेवा-सत्कार करता था। लेकिन उसकी पत्नी बहुत कंजूस थी। वह पूरी-पकवान आदि कभी नहीं बनाती थी। और न आने वाले रिश्तेदार के लिए अच्छा भोजन बनाती थी। कभी मिस्सी रोटी और दाल बनाती थी और कभी चावल-दाल की खिचड़ी। सब लोग खाकर संतुष्ट हो जाते थे ।
चूंकि रामधन बहुत अच्छा आदमी था। इसलिए जो भी मिलता था बड़े आनंद से खाते थे। और खाना खाते-खाते रामधन से बातें करते रहते थे। रामधन के लड़के के विवाह के बाद घर में परिवर्तन आने लगा था। रिश्तेदारों को सादा भोजन कराना बहू को अच्छा नहीं लगता था। उसने एक बार अच्छा भोजन बनाने की कोशिश की तो सास ने डांट दिया। बुढिया रिश्तेदारों के लिए भी अच्छा भोजन नहीं बनाने देती थी। बहू रिश्तेदारों के लिए भोजन सादा ही बनाती थी लेकिन दाल या बनी सब्जी में घी ऊपर से डाल देती थी। अब जो भी रिश्तेदार आता था, वह कहता था कि भोजन स्वादिष्ट बना है। बहू के भोजन की बड़ाई सुनकर बुढ़िया कुढ़ने लगी।
वह अब जल-भुनकर आने वालों के लिए खिचड़ी बनवाने लगी। अब आने वाले रिश्तेदार खिचड़ी खाकर ही प्रसन्न हो जाते । एक दिन बहुत समय बाद रामधन का बहनोई आया। उसके लिए भी खिचड़ी बनाई गई। जब रामधन का बहनोई खिचड़ी खा रहा था, वहीं पर रामधन और उसकी पत्नी भी बैटे थे। दोनों बैठे- बैठे अपने बहनोई से बतिया रहे थे। रामधन के बहिनोई ने कहा कि बहू खिचड़ी बहुत अच्छी बनाती है । बुढ़िया यह सुनकर जल-भुन गई। वह गुस्सा को अंदर ही-अंदर पी गई लेकिन रिश्तेदार का मन रखने के लिए बुढ़िया ने हां में हां मिलाई।
रामधन के आस-पास उसकी बिरादरी वालों के मकान थे। कुछ लोगों के यहां रामधन के यहां आने वालों की रिश्तेदारों की रिश्तेदारियां थीं। इसलिए जो रिश्तेदार रामधन के यहां आते थे, वे पड़ोस में रिश्तेदारियों के यहां भी जाते थे। वहां उनको पूरी-पकवान खाने को मिलते थे लेकिन वे रामधन बहु के द्वारा बनाई गई खिचड़ी की बड़ाई करते न चुकते थे। जब औरतें इकट्ठी होतीं तो रामधन की बहु की खिचड़ी की चर्चा जरूर होती । कोई-कोई किसी काम के लिए रामधन के घर जाती तो बुढ़िया से बहू की खिचड़ी की बड़ाई करती । इस प्रकार बहू की यह बड़ाई उसके आस-पास पूरी बिरादरी में फैल गई थी।
एक दिन बुढ़िया सोचने लगी कि खिचड़ी बनाने में जरूर कोई रहस्य छिपा हुआ है। जब बहू खिचड़ी बनाती तो सास छिप-छिपकर देखने लगी कि उसमें क्या डालती है। बुढ़िया की इन हरकतों को देखकर बहु सावधान रहती। वह समझ गई थी कि बुढ़िया क्या जानना चाहती है। अब बहू बुढिया की नजर बचाकर खिचड़ी में घी डालने लगी। एक दिन बुढ़िया ने बहु को खिचड़ी में घी डालते देख लिया। लेकिन बुढ़िया अब कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि अब रसोई पर पूरा कब्जा बहू का था। अब बुढ़िया संतोष करके चुप रहती। क्योंकि वह जानती थी कि पूरी-पकवानों से खिचड़ी में घी कम ही खर्च होता है।
एक दिन किसी के यहां महिलाएं इकट्ठी हुई। वैसे बुढ़िया आस-पड़ोस में बहुत कम आती जाती थी, लेकिन बुढ़िया को वहां जाना पड़ा। जब महिलाएं इकट्ठी बैठीं, तो कुछ-न-कुछ बातें चलने लगीं। बातें चलते –चलते बात रामधन की बहू के ऊपर आकर टिक गई । औरतों ने रामधन की औरत से कहा कि तुम्हारी बहू खिचड़ी बहुत स्वादिष्ट बनाती है। रामधन की औरत चुपचाप सुनती रही। एक ने चुटकी लेते हुए कहा, "अम्मा, मुझे भी सिखा दो ऐसी खिचड़ी बनाना। अब बुढिया से रहा न गया।
उसने तुरंत कह दिया--'घी बनावे खिचड़ी, नाम बहू को होय'।
