बनिया गड़ी ईंट उखाड़ता है
गांव में एक बनिया था। उसकी घर पर ही परचून की दुकान थी। गांव के ज्यादातर लोग इसी दुकान से दाल, आटा, तेल, मसाला आदि सामान लेने जाते थे। उस गांव में किसान मजदूर और गरीब अधिक थे। ये उसी दुकान नकद और उधार सामान खरीदते थे। बनिया बहुत समझदार और बेईमान था। वह सामान महंगा तो देता ही था लेकिन सामान में मिलावट भी करता था। मसालों में मिलावट, दालों में कंकड़ों की मिलावट, बेसन में मक्का के आटे की मिलावट।
जब कोई कुछ समय तक उधार के पैसे देने में असमर्थ होता था तो बनिया उन पैसों पर ब्याज लेना शुरू कर देता था । कभी-कभी उधारी वसूलने के लिए उसे झगडे का रूप भी देना पडता था। लेकिन उस लाला के बारे में यह प्रसिद्ध था कि झगड़े तो करता था लेकिन कोई भी झगड़ा त-तू, मैं-मैं से आगे नहीं पहुंचता था।
झगड़े के समय बनिया भी जोर-जोर से और बढ़-चढ़कर बोलता था। वह धमकियां भी देता था कि यह कर दूंगा, वह कर दूंगा, नालिश कर दूंगा। तेरा घर-खेत सब बिकवा दूंगा। बनिया पढ़ा-लिखा तो था ही, इसलिए उससे गांव के लोग अधिक डरकर रहते थे।
एक बार किसी बात पर उसके लड़के और मुखिया के लडके में कहा-सुनी और गाली- गलौज हो गई। हाथापाई भी हुई और उसमें मुखिया के लड़के ने हाथ-पैर में कुछ जड़ दिया। बनिया का लड़का रोता हुआ घर आया। बनिया को बहुत बुरा लगा। उसकी गांव में धाक जमी थी। उस धाक को वह बनाए रखना चाहता था। इसलिए उसने मुखिया को उलाहना देने की ठान ली और कुछ कहने का इरादा भी बना लिया।
मुखिया का मकान बनिया के मकान के पास ही था। बनिया ने मुखिया को बुलवाया। बनिया ने मुखिया को बैठाकर अपना उलाहना कह सुनाया। मुखिया ने बनिया के जुबान में कुछ अहम भावना देखी। मुखिया भी अपने रंग में आ गए और लगे सुनाने। मुखिया ने भी अपने लड़के की गलती नहीं मानी। अब दोनों एक-दूसरे के लड़के पर आरोप लगाने लगे। साथ ही मुखिया उसके दालान से निकलकर गली में आ गए। दोनों की आवाजें तेज होनेलगीं। गली के लोग भी अपने-अपने घर से बाहर निकल आए।
कुछ लोग बीच-बचाव करने के लिए आ गए। कुछ लोग अपने दरवाजों पर खड़े होकर यह तमाशा देखने लगे। कुछ लोग आपस में खडे होकर बतियाने लगे । जिनसे बनिया के साथ झगड़े हो चुके थे, उनका मानना था कि आज यह मुखिया से भिड़ गया है तो जरूर इसकी हाथापाई हो जाएगी। पिटाई भी खूब होगी बनिया की। गांव के खास लोग भी इकटठे हो गए थे। वहां दोनों को समझा रहे थे ।
बनिया कहता, "तुमने क्या समझ रखा है? मैं लड़ने में कमजोर नहीं हूं ।" यह कहते हुए कभी घर की तरफ जाता कभी चबूतरे की ईंट उखाड़ने लगता। एकादि व्यक्ति उसे रोकता । इसी तरह मुखिया अपने घर से लाठी निकाल लाए। जब मुखिया आगे बढ़ते, तो कई लोग मुखिया को पकड़कर वापसे पीछे ले जाते। बनिया तेजी से पीछे हटता और कहता, "हटना जरा, इसकी लाठी देखते हैं। "यह कहकर वह चबूतरे की ईट उखाड़ने लगता। मुखिया कहता, "अरे इस बनिया की मौत का समय आ गया है। इसे छोड़ दो, वरना आंखों के सामने से ले जाओ इसे।"
लोगों ने समझ लिया था कि अब जरूर खून-खराबा होने वाला है। जब बनिया ने देखा कि मेरा बना रौब खराब हो सकता है और मारे-पीटे भी जा सकते हैं, तो वह बोला, "इसको ले जाओ नहीं अच्छा नहीं होगा।" यह कहता हुआ दो-एक लोगों के साथ घर में चला गया। समझदार लोग मुखिया को समझा रहे थे और हंस भी रहे थे। मुखिया बोला, "कुछ हाथ में लेकर ही नहीं आया था। मैं खाली हाथ उस पर चोट करना नहीं चाहता था। लोग मुझे कायल करते।" एक ने कहा, "मुखिया जी, मैं सोच रहा था कि आज जरूर लट्ठ बजेंगे। चलो होनी टल गई, अच्छा हुआ।'' जैसे ही उसकी बात खत्म हुई, गांव के बनिया के बारे में सरपंच बोल पड़ा, "अरे भाई, "बनिया के बारे में तुम लोग एक चीज नहीं जानते। जब लड़ता है, तो 'बनिया गड़ी ईट उखाड़ता है । न ईंट उखडेगी और न लड़ाई होगी।
लोगों की हंसी गूंजी और लोग अपने- अपने घर चल दिए।
