लदे बैल कसमसाय कलीलो
एक बार रामधन अनाज की गाड़ी लिए जा रहा था। गल्ला मंडी उसके यहां से बहुत दूर थी। गर्मी के दिन थे इसलिए वह खलिहान से सुबह निकला था।चलते-चलते सूर्य सिर पर आ गया था। गर्मी से बुरे हाल थे। बैल भी पसीना-पसीना हो रहे थे। हवा बहुत कम चल रही थी। रामधन बार-बारअपना पसीना पोंछता जा रहा था। चलते-चलते एक गांव के पास पहुंचा। उस गांव में रामधन का रिश्तेदारी थी। इसी रास्ते से लगे उसके समधी के खेत थे। उस समधी के खेतों में रास्ते से लगा एक पीपल का पेड़ था। उसकी छाया पूरे रास्ते और आधी छाया खेतों में थी। रास्ते से लगी लंबाई में एक चारपाई बिछी थी। रामधन ने गाड़ी उसी चारपाई के बराबर में रोक दी।
रामधन के समधी तथा दो-एक लोग और चारपाई पर बैठे थे। ग़ाड़ी रुकते ही सबकी नजरें रामधन की ओर गई । रामधन के समधी राम-राम करते हुए उठे और रामधन के पास पहुंचते ही बोले, "थोड़ा सुस्ता लो। चारपाई पर आ जाओ।' रामधन चारपाई पर पहुंच गए। चारपाई पर बैठे लोग हुक्का पी रहे थे। रामधन की ओर हुक्का बढ़ाते हुए उसके समधी ने कहा, "खाना खाकर आराम करो । दोपहर ढलते ही चले जाना।" रामधन ने कहा, "खाना तो मैं साथ लाया हूं । लौटकर आऊंगा तब आपके यहां भोजन करूंगा। इतना कहकर रामधन ने हुक्का गुड़गुड़ाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर तक सब हुक्का पीते रहे और बातें करते रहे।
बैलों को भूसा डाल दिया था। बैल भूसा खा रहे थे और लंबी-लंबी सांसें खींच रहे थे। बैल पसीने से पूरी तरह भीगे थे। एक किसान की नजर एक बैल के पेट पर पड़ी। उस जगह के बाल उठे हुए थे और उसी जगह किलनी जाति का बड़ा कलीला दिखाई दिया। उस कलीले का मुंह बैल की खाल में था और शरीर नीचे लटक रहा था। कलीले का मुंह बैल के पसीने से भीग रहा था। और बेचैन होकर अपने हाथ पैर चला रहा था। वह किसान रामधन से बोल उठा, "समधी साहब, लगता है आप बैलों की देखभाल अच्छी तरह नहीं करते हैं। देखो, पेट पर कितना बड़ा कलीला चिपका है। दूसरा किसान बोला, "देखो तो, जुआं बैलों पर लदा है। गाडी और अनाज का भार भी बैलों के ऊपर है लेकिन कलीले पर तो कोई बोझ नहीं पड़ रहा है। कलीला क्यों तडप रहा है?"
वहां एक बुजूर्ग भी बैठे थे। बोले, "अरे वाह ' लदे बैल कसमसाय कलीलो'।
एक किसान बोला, " काका, कलीला कसमसाय क्यों रहा है?" काका बोला,"अरे, तू भी कुछ नहीं जानता। बैल का पसीना कलीले के लिए जहर होता है। देख, कलीला गिरकर वह चला जा रहा है।"
सब लोग उसी की ओर देखने लगे ।
