रविवार, 12 जून 2022

आते वस्त्रों का, जाते गुणों का सम्मान aate vastron ka jate guno ka samman

 

आते वस्त्रों का, जाते गुणों का

 

आते वस्त्रों का, जाते गुणों का सम्मान aate vastron ka jate guno ka samman

 

            राजा भोज पराक्रमी के साथ-साथ विद्वान भी था । उसके दरबार में आए दिन विद्वान लोग आया करते थे। वह उनका सम्मान करता था। एक बार राजा के यहां विद्वान लोगों की व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। उसमें विभिन्न जगहों से अनेक विद्वान आए।

विद्वान विभिन्न क्षेत्रों से आए थे इसलिए उनकी वेशभूषा अलग-अलग थी। आने वाले विद्वानों का राजा ने उचित सम्मान देकर आसन दिए। उन विद्वानों में एक ऐसा भी विद्वान था कि जिसके वस्त्र राजसी थे और देखने में भी सुंदर था। राजा उससे सबसे अधिक प्रभावित हुआ। फलस्वरूप राजा ने उसे सबसे अच्छा आसन दिया।

             यह आयोजन दरबार में किया गया था। वहां दरबार के सभासद, नगर के गणमान्य लोग तथा पड़ोसी राज्यों से आए हुए मेहमान विराजमान थे। दरबार में विद्वानों के प्रवचन आरंभ हुए। एक -एक करके विद्वान अपना- अपना व्याख्यान देते गए और वापस जाकर अपने आसन पर बैठते गए। लोग व्याख्यानों को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे । जब आसनों पर विराजमान सब विद्वान बोल चुके, तो बोलने वालों में से एक नाम बचा था। राजा ने सोचा कि यह विद्वान आया नहीं होगा । फिर भी राजा ने उस विद्वान के नाम की पुकार लगवाई। नाम बोलते ही धरती पर बैठी भीड में से एक व्यक्ति उठा। साधारण-सा व्यक्ति। वह साधारण जनता को तरह पुराने वस्त्र पहने था। सबकी नजर उस व्यक्ति पर जाकर टिक गई । अधिकतर लोगों ने उसके हालात देखकर मजाक उड़ाया। राजा भोज भी असमंजस में पड़ गया। वह मंच पर आया और अपना व्याख्यान देना आरंभ किया। उसके व्याख्यान सुनते ही लोग वाह वाह करने लगे। राजा से लेकर प्रजा तक, सब उसको तारीफ करने लगे। राजा उसकी वाक्पटुता पर मुग्ध हो गया।

            उसका व्याख्यान समाप्त होते ही भीड उसकी ओर उमड पड़ी। सब लोगों ने उसका बहुत सम्मान किया। राजा भोज उसे दरवाजे तक छोड़ने गए।

            राजा भोज लौटकर जब अपने आसन पर बैठा, तो एक सभासद आश्चर्य में डूब  हुआ था। वह यह नहीं समझ पाया कि जिस विद्वान का राजा भोज ने आने पर विशेष स्वागत किया था, जाते समय उसकी तरफ नजर तक नहीं उठाई। जो पुराने मैले कपड़ों में भीड़ में बैठा था, उसको वे बाहर तक छोड़ने गए। उसने यही प्रश्न राजा भोज से कर दिया। राजा भोज हंसते हुए बोले, "भाई, विद्वान होना किसी के माथे पर नहीं लिखा होता, जिसे पढ़कर पहचाना जा सके। जब कोई बोलता है तब उसकी विद्वता का पता चलता है। जब तक कोई बोलता नहीं, तब तक उसके वस्त्रों की चमक-दमक ही उसके बड़े होने की पहचान होती है। जिसे देखकर हम उसके बड़े और महान होने का अनुमान लगाते हैं। इसीलिए विद्वानों के आने पर सबसे अधिक अच्छे वस्त्र पहनने वाले का स्वागत किया था। लेकिन जब मैंने उसका व्याख्यान सुना तो एक साधारण आदमी निकला। इसी प्रकार जब मैंने साधारण और मैले वस्त्र पहने सामान्य व्यक्त का व्याख्यान सुना, तो में आश्चर्य में डूब गया। उसका व्याख्यान गुणों से भरपूर था। उसकी भाषा श्रेष्ठ थी। उसके गुणों से मैं बहुत प्रभावित हुआा। इसीलिए जाते समय मैंने उसका सम्मान किया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आते समय मैंने वस्त्रों का अभिनंदन किया था और जाते समय गुणों का।

उसके दरबार में विद्वान सभासद भी थे। एक विद्वान सभासद ने कहा, राजन, आप ठीक कहते हैं, "आते वस्त्रों का, जाते गुणों का' स्वागत होता है।"

 

 

 

 

 

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