खरबूजे को देखकर, खरबूजा रंग बदलता है
गर्मी के दिन थे। बेतहाशा गर्मीं पड़ रही थी। नदी के कछार में तरबूज, खरबूजा, ककड़ी के खेत थे। किसान अपनी-अपनी फसल देख रहे थे। सोच रहे थे कि जल्दी फसल पकने लगेगी । फलों को बेचकर खर्चे निकलने शुरू हो जाएंगे। जैसे-जैसे दिन बीतते गए, बेलों में फूल आने लगे । फिर फल निकलने शुरू हो गए। फल के छोटे से आकार तेजी से बढ़ने लगे। किसी खेत में ककड़ियां आना शुरू हो गई । किसी बेल में तरबूज लगने लगे। वह दिन आ गया जब ककड़ियां और तरबूज तोडे जाने लगे और बाजार में बिकने लगे। बाजार में ककड़ियों की अपेक्षा तरबूज अधिक पहुंच रहे थे। खरबूजे अभी बाजार में नहीं पहुंचे थे। लेकिन बहुत जल्दी पकने योग्य होने वाले थे। किसी-किसी बेल में खरबूजे पकने वाले थे। कुछ दिन बाद ही खरबूजे भी बाजार में कहीं-कहीं दीखने लगे।
एक दिन शहर से एक लड़का उस गांव में आया । उसने खरबजे के खेत नहीं देखे थे । किसान उसे खरबूजे का खेत दिखाने ले गया। बेलों में लगे खरबूजों को देखकर वह आश्चय में पड़ गया। इससे पहले वह सोचता था कि खरबूजे पेड पर लगते होंगे। उसने बेलों में लगे फूल देखे। छोटे-से खरबूजे के साथ सुखा पफूल देखा। छोटे बड़े आकार के खरबूजे देखे।
एक खेत में उसने एक बेल देखी, उसमें लगभग सब खरबूजे बराबर के थे। उनमें एक खरबजा लगभग पक गया था और रंग पीला नारंगी पड़ गया था। उसी बेल तथा आस- पास की बेलों में खरबूजे हरे रंग के थे।
दूसरे दिन वह फिर अपने रिश्तेदार के साथ कछार के खेतों में गया। घूमते घूमते वह उसी खेत में जा पहुंचा जहां एक दिन पहले एक खरबूजा लगभग पका देखा था। आज उसी बेल के खरबूजों को देखकर हैरत में रह गया। वह बोला, "इस बेल में एक खरबूजा पका था। आज बेल के लगभग सभी खरबूजे पके हैं। यह सब एक रात में कैसे हो गया?"
उस लड़के की बात सुनकर उसका रिश्तेदार खूब ठहाका लगाकर हंसा। किसान के हंसने का वह मतलब समझ नहीं पाया। उसके रिश्तेदार ने कहा, "बेटे, ऐसा ही होता है। तुम नहीं जानते। जब एक खरबूजा पका होता है, दूसरे दिन उस बेल के बराबर के सब खरबूजे पक जाते हैं। यह प्रकृति का नियम है।" शहरी लडका बोला, "यह कैसे हो जाता है? बताओ तो जरा।"
उसके रिश्तेदार ने अपनी भाषा में कहा, "अरे भाई, "खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है।"
