हंड़िया में एक चावल देखा जाता है
एक परिवार था। उस परिवार में रोज रोटियां ही बनती थीं। रोटियों के साथ के लिए कभी सब्जी बनती थी कभी दाल। लेकिन दो-चार दिन बाद एक समय चावल भी बन जाते थे। चावल अधिकतर दाल के साथ या कढ़ी के साथ खाए जाते।
उस परिवार में एक लड़की भी थी। जब उसकी दादी चावल पकाती तो कुछ देर बाद चमचा से चला देती। फिर कुछ देर बाद हांड़ी का ढक्कन उठाकर चमचा डालती और कुछ चावल निकालती। वह उसमें से एक चावल निकालकर देखती फिर चमचे के चावल हांडी में डालकर ढक्कन रख देती। फिर थोड़ी देर बाद कुछ चावल निकालती, देखती और यदि चावल पके हैं
तो हांड़ी को चूल्हे से उतार लेती।
लड़की चावल पकने का पूरा क्रम इसी तरह देखती रहती। आश्चर्य में बनी रहती लेकिन किसी से कुछ न कहती थी । उसे दादी से पूछने में डर लगता था। और किसी से वह पूछती ही नहीं थी। एक दिन उसकी दादी ने जैसे ही हांड़ी चूल्हे से उतारकर रखी, तो उसने हिम्मत जुटाकर दादी से पूछ लिया, "दादी, चावल बनाते समय आप एक चावल ही क्यों देखती हैं ? और चावलों को क्यों नहीं देखतीं?'" उसकी दादी ने हंसते हुए कहा, "अरे पागल लड़की। तू यह भी नहीं जानती। चावल इसी तरह पकाए जाते हैं। लड़की आश्चर्य में डूबी सुनती रही। उसकी समझ में कुछ नहीं आया। सोचती रही-मैंने दादी से पूछा था कि हांडी में एक ही चावल क्यों देखते
हैं? दादी ने कुछ नहीं बताया। कह दिया कि चावल इसी तरह पकाए जाते हैं। वहीं पास में उसके दादाजी बैठे हुए थे। वे ठहाका लगाकर हंसे। हंसी का ठहाका सुनकर लड़की और उसकी दादी दोनों आश्चर्य में पड़ गए उसकी दादी ने कहा कि इसमें ठहाका लगाने की क्या बात है?
फिर दादा लड़की की तरफ हंसते हुए बोले, " बेटा, सब चावल एक साथ पकते हैं। यानी, सब चावल आधे कच्चे होंगे तो एक चावल भी आधा कच्चा होगा। जब सब चावल पके होंगे, तो एक चावल भी पका होगा।
यानी एक चावल पका होगा तो सब चावल पके होंगे। इसलिए "हंडिया में एक चावल देखा जाता है। ''
अब उस लडकी की समझ में आया एक चावल देखने का राज।
