गरीबी में आटा गीला
एक मजदूर परिवार था। उस परिवार में किसी-न-किसी चीज का अभाव हमेशा बना रहता था। परिवार में किसी बच्चे के पास पूरे कपडे नहीं होने थे। घर की रुखी सूखी रोटियों के अलावा बाहर की चीजे कम ही खा पाते थे। सर्दियां भी बिना गर्म कपड़ों के गुजर जाती थीं। कभी भरपेट खाते तो कभी आधा पेट।
एक दिन की बात है। सब बच्चें चौके में बैठे थे । उन्हें जोर की भूख रही थी। बच्चों की मां आटा मांड रही थी। वह आटा में पानी थोड़ा-थोड़ा करके डाल रही थी फिर भी पानी कुछ ज्यादा पड़ गया था। आटा इतना गीला हो गया था कि उसकी रोटियां नहीं बनाई जा सकती थीं। वह बहुत देर तक बैठी अपने से ही बड़बड़ाती रही। उसका पति भी बहृत नाराज हुआ। उसे ऐसा लगने लगा कि बिना रोटियां खाए ही काम पर जाना पड़ेगा।
औरत उठकर अंदर गई और मटकियां देखने लगी शायद किसी में आटा, बेसन आदि कुछ पड़ा हो। लेकिन कुछ नहीं मिला। अंत में वह आटा लेने के लिए दुकान पर गई । लाला ने भी आटा उधार देने से मना कर दिया। और ताने मारते हुए दुकानदार ने कहा, "तुझे कौन देगा? पिछली बार छ: महीने बाद पैसे दिए थे। मैं तो हाथ जोड़ता हूं ऐसे ग्राहकों से ।' पड़ोस में एक-दो परिवार रहते थे जिनसे उसकी बोलचाल थी। उनके पास जाकर कुछ पैसे उधार मांगे। लेकिन वे भी नाक-मुह सिकोडकर रह गई, कुछ नहीं दिया। वह अपना- सा मुंह लिए घर लौट आई।
वह चौके में आकर चुपचाप बैठ गई । बच्चे भी समय की स्थिति को समझ गए थे क्योंकि इस तरह को स्थितियां अक्सर आती रहती थीं। वे भूख में अंदर ही- अंदर कुलबुला रहे थे। लेकिन वे अपनी मां से डर भी रहे थे। यदि यह कहा कि भूख लगी है, तो पिटाई हो जाएगी। मजदूर की पत्नी ने सोचा कि चलो, नमकीन लपसी बना लू लेकिन उसी क्षण उसे याद आया कि लपसी के लिए तो आटा पहल भूनकर लाल कर लेना पडता है। इसी बीच मजदूर ने कहा कि में कोशिश करता हूँ कहों से कुछ मिल जाए। कहकर वह घर से निकल गया।
उसके जाते ही उसकी पत्नी विचारों में खो गई। सोचने लगी अपने बचपन के दिन। इस तरह की कोई परेशानी नहीं थी घर में। कभी भूखा नहीं रहना पड़ा था उसे। हम सब भाई-बहन खूब खेलते थे। हमेशा प्रसन्न रहते थे।
अचानक ध्यान टूटा और आह भरकर कहने लगी, "हे भगवान, ' गरीबी में आटा गीला' न करे किसी का। "
