बुधवार, 22 जून 2022

माया अंट की, विद्या कंठ की Maaya ant ki vidya kanth ki

 

माया अंट की, विद्या कंठ की

माया अंट की, विद्या कंठ की Maaya ant ki vidya kanth ki

 

 

 

एक गरीब परिवार था। उसका मुखिया मजदूरी करता था । मजदूरी में जितने पैसे मिलते थे, सब खर्च हो जाते थे। तीज-त्यौहार के समय या रिश्तेदारों के आने-जाने में पैसा उधार लेने पड़ते थे। फिर उन पैसों को वापस करने में महीनों -वर्षों लग जाते थे।

एक दिन पति-पत्नी ने मिलकर पैसे बचाने का उपाय सोचा। उन्होंने आपस में तय किया कि हर महीने कुछ-न-कुछ पैसे बचाकर गुल्लक में डालते रहेंगे और उसी समय से उन्होंने ऐसा काम करना शुरू कर दिया। वह मजदूरी के पैसे पत्नी को रोज लाकर देता। उसकी पत्नी उसमें से कुछ-न-कुछ निकालकर गुल्लक में डाल देती थी। इस प्रकार थोड़ा-थोड़ा प्रत्येक दिन उसमें डालते तो महीने में अच्छे पैसे जमा हो जाते।

आठ-दस वर्ष में अच्छी-खासी रकम हो गई। उसका लड़का अब सोलह-सत्रह वर्ष का हो गया था। छोटा सा एक कमरे का मकान था और लंबा आंगन । लड़का थोड़ा शैतान था और उसको गलत आदतें पड गई थीं। उसे हमेशा यही डर बना रहता था कि कहीं लड़का उस धन को चुराकर बर्बाद न कर दे । इसलिए उसने सोचा कि इसे कहीं हिफाजत से रख दिया जाए। इसी गांव में उसके बचपन का मित्र था। वह हर तरह से संपन्न और ईमानदार था। उससे वह अक्सर मिलता रहता था । एक बार वह मिला। उसने अपनी परेशानी उसके सामने रखी। सुनकर उसे भी इस बात की चिंता हुई। उसके मित्र ने कहा, " भाई, सावधानी तो रखनी ही पड़ेगी।' कृछ सोचते हुए कहा, "' एक रास्ता है।' उसने पूछा, "क्या?" "भई, मेरे यहां रख सकते हो, जब चाहो तब ले लेना।

उस मजदूर ने ऐसा ही किया। उसने अपने जोड़े हुए पैसे अपने मित्र के पास रख दिए। अब वह मजदूरी करता रहा और घर का ख्चो चलाता रहा। काम कुछ कम मिलने लगा था इसलिए उसकी पत्नी खर्चे में से कुछ बचा नहीं पा रही थी।

करीब दो वर्ष बाद ऐसा अवसर आया जब उसे पैसों की आवश्यकता पड़ी। उसकी लड़की की सगाई पक्की होनी थी। कुछ दिन से वह इसी जोड़-तोड़ में लगा हुआ था। उसने सोचा कि दोस्त के पास जमा रकम में से कुछ पैसे ले लेंगे। दोस्त से दो दिन पहले लेकर सब सामान खरीदकर लड़की की सगाई पक्की करने के लिए भेज दूंगा।

वह अपने दोस्त के पास पैसे लेने के लिए गया। वह अपने दोस्त का उत्तर सुनकर भौचक्का रह गया। उसको पसीना आ गया। उसके दोस्त ने कहा, "यार, तुमको कम-से -कम आठ-दस दिन पहले तो कहना ही चाहिए था। पैसे रखे हुए थे। मैंने पांच दिन पहले ही खेत खरीदे थे। उसके लिए पैसे कम पड़ रहे थे। इसलिए मैंने उन पैसों को दे दिया था । इस समय तो मेरे पास एक पैसा भी नहीं है।" उसने कहा, " कल मुझे लड़की की सगाई पक्की करने के लिए सामान खरीदना है। किसी से लेकर दे दो । '" इस पर उसके मित्र ने कहा, "थोडे पैसे किसी से मांगेंगे तो मेरी बेइज्जती होगी । तुम किसी से पैसे मांग लो । आठ-दस दिन में तुम्हें दे दूंगा । तुम उसे लौटा देना।

जब उसे अपने दोस्त से पैसे वापस नहीं मिले, तो वह बहुत दुखी हुआ। वह कई लोगों के पास पैसे उधार लेने के लिए गया लेकिन किसी ने नहीं दिए। सबने यही कहा कि गहने लाओ या खेत के कागज लाओ और पैसे ले जाओ। अंत में वह एक ऐसे व्यक्ति के पास गया जो उससे राम-जुहार करता था और कभी-कभी वह इसके हाल-चाल पूछ लेता था। जब वह वहां पहुंचा, तो वहां दो-एक बुजुर्ग और भी बैठे थे। उसने अपने दोस्त के बारे में भी बताया जिसके पास पैसे रख दिए थे। उसने कहा, "बेटा मैं बुजुर्ग हूं । बच्चे मेरी बात मानेंगे नहीं।'' अंत में इस पर उसमें से एक ने उस मजदूर से कहा, "बेटा, 'माया अंट की, विद्या कंठ की' । "

उस मजदूर ने सिर हिलाया और चल दिया।

 

 

 

 

Share this:

Related Posts
Disqus Comments