शुक्रवार, 13 मई 2022

जनम का दुखिया, नाम सदासुख janam ka dukhiya nam sadasukh

 

जनम का दुखिया, नाम सदासुख

 

जनम का दुखिया, नाम सदासुख

 

एक गरीब परिवार में लड़के का जन्म हुआ। उसका नाम सदासुख रखा गया।

जब वह लगभग 12 वर्ष का हुआ, उसके पिता की मृत्यु हो गई । उसके दो छोटे भाई और बहिन थी । हंसता-खेलता बालक घर का मुखिया बन गया। उसकी मां ने उसे मजदूरी का काम करने भेजना शुरू कर दिया था । शुरू में उसे कम पैसे मिलते थे। उन्हीं पैसों से उसके घर का गुजारा चलता।

जैसे-जैसे समय बीतता गया वह बड़ा होता गया । वह रात-दिन अधिक पैसा कमाने के बारे में सोचता रहता । शरीर का दुबला पतला सदासुख मेहनत करने में जी नहीं चुराता था । घर के खर्च की चिंता हमेशा उसे सताए जा रही थी। अब सबसे अधिक चिंता उसे अपनी बहन की होने लगी थी क्योंकि वह विवाह योग्य हो गई थी । उसकी मां कहती थी, "बेटा, तू विवाह के

लायक हो गया है । पहले तू विवाह कर ले।" लेकिन वह कहता रहता, "मेरे विवाह के बाद घर के खर्चे चलाना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए में विवाह नहीं करूंगा।'" उसकी मां उसके विवाह के लिए कह कहकर चुप रहने लगी थी।

कुछ समय बाद उसकी बहिन का विवाह हो गया। अब वह विवाह का कर्ज उतारने में लगा रहता। बहन की ससुराल से भी अब कोई-न-कोई आता रहता। खर्चे और बढ़ते चले गए।

बहन के विवाह के बाद उसकी मां बीमार रहने लगी। छोटे भाई भी काम करने योग्य हो गए थे लेकिन वे कामचोर थे। कभी काम करने जाते थे, कभी नहीं जाते थे। वह परेशान रहने लगा। उसकी मां ने कहा कि इनकी शादी कर दो, अपने आप ठीक हो जाएंगे । किसी तरह उसने उन दोनों का विवाह कर दिया। अब उसे अपने भाइयों के लिए भी खर्चा देना पड़ता। कुछ समय बाद दोनों भाई कमाने लगे और अपनी-अपनी बहुओं को लेकर अलग हो गए। घर एक ही था लेकिन चूल्हे अलग अलग हो गए थे। कुछ समय बाद उसकी मां की मृत्यु हो गई । मां के मरते ही सदासु्ख के और बुरे दिन आ गए । अब वह अपनी रोटियां खुद बनाता । छोटे भाइयों की बहुएं टुकुर टुकुर देखती रहतीं । कोई भी उसकी रोटियां नहीं बनाता। बचपन से ही उसने जी-तोड़ मेहनत की थी। अब शरीर से काम नहीं होता था। फिर भी जब ठीक महसूस करता, तो काम पर जाता था । लेकिन  ऐसा अधिक समय तक नहीं चला। अब वह भूखा-प्यासा घर पडा रहता।

कभी मोहल्ले में किसी के पास जा बैठता। वह घर वाला उसके हाल और खाना खिला देता।

भाई की बहुएं उसे भोजन नहीं देती थीं। हां, कभी कभी बचा हुआ भोजन उसे दे जाती थीं। कभी कोई मुहल्ले का उसे भोजन करा देता। एक दिन चबूतरे पर बैठे कुछ लोग बातें कर रहे थे। उसी समय उन्हें सदासुख आता दिखाई दिया। सबकी नजरें उसकी ओर चली गई।

 उसे देखकर चब्तरे पर बैठा एक आदमी बोल उठा, "देखों काका, 'जनम का दुखिया, नाम सदासुख'।"

वहां बैठे लोगों ने कहा कि हां भैया, ठीक कहते हो ।

 

 


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