गंगा जी की रेता, चंदन समान जान
एक गांव
में एक ब्राह्मण रहता था। वह विवाह, कथा आदि संस्कार
संबंधी कार्य संपन्न कराता था। कभी कोई
उसे मुंडन संस्कार के लिए ले जाता, तो कोई कभी उसे
घर के मुहूर्त के लिए ले जाता। उसकी पंडिताई कम चलती थी इसीलिए उसके घर का गुजारा
नहीं हो पा रहा था। वह गांव वालों को कथादि कराने के लिए लोगों को तैयार करता रहता
था, ताकि उसकी भी कुछ आमदनी हो। उसे पता चलता कि किसी के लड़के की शादी पक्की हो
गई है, तो वह उससे जल्दी से जल्दी मिलता ताकि दूसरा पंडित उस सगाई का काम न ले
ले। इसी प्रकार यदि कोई लड़की की सगाई पक्की कर आता, तो उससे
भी जल्दी मिलकर विवाह का काम अपने हाथ में ले लेता।
वह अपना उल्लू सीधा करने में माहिर था । एक दिन गांव के ठाकुर के पिता का देहांत हो गया। दाह-संस्कार के बाद ठाकर फूल सिराने का मुहूर्त निकलवाने के लिए उस पंडित के पास गया। पंडित ने यह अच्छा मौका समझा। जब ठाकुर अपने पिता के फूल सिराने चला, तो पंडित ने कहा, "आप तो परिवार की तरह हैं। यहां की पूजा तो कर ही रहा हूं । वहां पंडित ठीक नहीं मिलते हैं । लोगों को लूटते हैं । कुछ मंत्र नहीं जानते। यूं ही बकते रहते हैं। कहो तो मैं आपके साथ चलूं । वहां के संस्कार पूरे विधि विधान से करा दूंगा|” ठाकुर बोला, "यह तो अच्छी बात है। आप चलेंगे तो सब ठीक होगा|”
ठाकृर ने
अपने पिता के फूल गंगा में सिराने के लिए पूरी तैयारी कर ली। ठाकुर ने पंडित को
बुलाकर कहा कि वहां जिस जिस चीज की जरूरत पड़े, यहां से ही ले
चलो। पंडित बोला, "ठाकुर साहब, आप चिंता न करें। मैं अपने साथ सब सामग्री ले चलूंगा।
पंडित
छोटी सी पोटली बगल में दवाए ठाकुर के साथ चल दिए । रात भर यात्रा करने के बाद वे
सुबह गंगा किनारे पहुंच गए। घाट पर एक जगह दोनों ने अपना अपना सामान रखकर स्नान
किया। स्नानादि करने के बाद ठाकृर ने अपने हाथ में अपने पिता के फूल लिए और पंडित
ने एक छोटी टोकरी पोटली में से निकाली और ठाकुर के साथ गंगा में घुसे। पानी में
कमर तक जाकर रुक गए।
ठाकुर सीधे
खड़े हो गए और पंडित ने मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया। तिलक लगाने का जब समय
आया, तो पंडित जी टोकरी का सामान इधर से उधर करने लगे। जब पंडित को टोकरी में
चीजें ऊपर-नीचे करते हुए कुछ देर हो गई, तो ठाकुर ने पूछा, "क्या ढूंढ रहे हो?"'
पंडित ने कुछ नहीं कहा और एक डुबकी लगाई। पानी के नीचे से पंडित हाथ में
रेता लेकर निकले । ठाकुर ने पूछा कि हाथ में क्या है? ठाकुर पूरा बोल भी न पाए थे कि पंड़ित जी ने उसी रेता से ठाकुर के तिलक
लगाते हुए कहा गंगा जी की रेता, चंदन समान जान|'
ठाकुर थोड़ा
गुस्से में आ गए लेकिन पंडित को जाहिर नहीं होने दिया। मन में सोचने लगे कि पंडित
बहुत घटिया है। चंदन की डिबिया तक नहीं लाया और मुझसे कह रहा था कि मैंने सब देख
लिया सब सामान है। विचार टूटते ही तुरंत ठाकुर बोले, "हो गया
पूरा, चलें ।" पंडित जी बोले, "ठाकुर जिजमान
। दक्षिणा तो दो, तभी तो संस्कार पूरा होगा। ठाकुर को पंडित पर गुस्सा तो था लेकिन कुछ
बोला नहीं। ठाकूर ने अंटी में से दक्षिणा नहीं निकाली। ठाकुर ने एक डुबकी लगाई।
बंद मुट्ठी लिए बाहर निकले। पंडित जी की हथेली पर अपनी मुट्ठी खोलते हुए
बोले— गंगा जी की
मेंढकी, गैया समान जान' ।
इतना कहते ही
मेंढकी पंडित के हाथ पर आ गई । पंडित ने तुरंत अपनी पकड़ ढीली की और मेंढकी पानी
में कूद गई।
पडित ठाकुर के
चेहरे की ओर देखते रहे। पंडित का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया।
