गए थे नमाज पढ़ने, रोजे गले पड़ गए
एक मोहल्ले में काजी का परिवार था। सब मोहल्ले वाले काजी के परिवार का सम्मान करते थे। इस परिवार के सभी बच्चे पढ़ने में होशियार थे। सभी काम में लगे हुए थे। लेकिन उस परिवार में एक लड़का ऐसा था कि उसके आचार-विचार घर के लोगों से अलग थे। परिवार के सब लोग नमाज पढ़ते थे और धार्मिक तथा सामाजिक अदब-कायदा अपनाते थे । इसका यह मतलब नहीं कि वह लड़का बड़ों का अदब नहीं करता था। वह सबका सम्मान करता लेकिन था नए ख्यालों का। वह अल्लाह में विश्वास तो करता था, लेकिन नमाज नहीं पढ़ता था। धार्मिक मेलों में भी बहुत कम शिरकत करता था। वह काम से आकर घर खाना खाता और घर से निकल जाता।
मोहल्ले में एक जगह थी जहां लड़के इकट्ठे होते थे। मिलकर सब गपियाते और इधर-उधर की बातें करते थे। कभी-कभी काम-धंधे की बातें भी होतीं। काजी का वह लड़का भी इन लड़कों के साथ बैठता था। और जब सब लड़के अपने-अपने घर चल देते थे, तो वह भी अपने घर चला जाता था।
मोहर्रम के दिन चल रहे थे। इन दिनों लड़कों की महफिल दिन में भी लग रही थी । उस महफिल के लड़के नमाज पढ़ते थे तथा रोजे रख रहे थे। वे सब जानते थे कि काजी का लड़का नमाज नहीं पढ़ता है। इसलिए एक दिन लड़कों ने उस लड़के से कहा किे आज हम लोगों के साथ नमाज पढ़ने चल। उसने बहुत मना किया लेकिन अंत में राजी हो गया। उसने सोचा,चलो एक दिन नमाज पढ़ लेते हैं। यह सोचकर वह लड़कों के साथ नमाज पढ़ने चल दिया। नमाज पढ़ने की खबर उसके घरवालों को मिली। घरवालों को बड़ा
अचरज हुआ और वे खुश भी हुए। सोचा- चलो एक नेक काम तो किया आज। हालांकि लड़को के कहे पर काजी के परिवार वालों को विश्वास नहीं हो रहा था। क्योंकि वे अपने लड़के के मिजाज को अच्छी तरह जानते थे। जब वह घर आया, तो रात हो गई थी। सभी ने उसे इस नेक काम के लिए बधाई दी। उसकी दादी ने भी कहा, "बेटा तुमने नमाज पढ़ी, मुझे बहुत खुशी हुई। अब तुम नेक बंदे हो गए हो। जब वह भोजन करने बैठा, तो सबने कहा कि कल से पूरे दिन खाने को कुछ भी नहीं मिला करेगा। और सुबह चार बजे उठकर, नहाकर पांच बजे से रोजे रखना।
उसने कहा कि मैंने रोजे थोडे ही रखे हैं, कुछ नहीं किया। मैं तो लड़कों के जबरदस्ती करने पर नमाज पढ़ने चला गया था। उसकी मां ने कहा कि रोजों के दिन चल रहे हैं। जब नमाज पढ़ी है, तो रोजे तो रखने ही पड़ेंगे। जब से नमाज पढ़ते हैं तब से ही रोजे शुखू हो जाते हैं । बेटे, अब तो धर्म की मर्यादा का सवाल है।" वह पशोपेश में पड़ गया। सोचने लगा-अब रोज सुबह पांच बजे उठना पड़ेगा। दिन में कुछ खा-पी भी नहीं सकता । जब खा-पी नहीं सकता तो इधर-उधर जाना भी बंद।
वह यह सब सोच ही रहा था कि उसके दादा बोले, "क्या सोच रहे हो? यही कि 'गए थे नमाज पढ़ने, रोजे गले पड़ गए'।'
इतना सुनकर घर के सब लोग हँस पड़े।
